बावदिया नाम का एक लड़का एक गांव मे रहता था। वह बहुत ही भोला था। वह बहुत अच्छा सेरजा बजाता था। एक दिन उनकी माँ ने उनसे कहा कि बेटा अब तुम बड़ा हो गया है कुच काम वाम सिख लो, कल से तुम जंगल चले जाओ लकड़ियाँ काटने के लिए। बावदिया ने भी माँ के हाँ मे हाँ मिला के बोला ठीक हे माँ मै कल से बादारियों के साथ जंगल जाऊंगा बोलके वह बाहर चला गया.
अगले दिन सुबह होते ही माँ ने रास्ते में खाने के लिए कुच नाश्ता बांध के दिया और बावदिया ने माँ से अलविदा कहके घर से चला गया जंगल में लकड़ियाँ काटने बादारियों के साथ। कुच दुर पैदल जाके वे लोग पहाड़ पहुंच गए। पहाड़ पहुंचते पहुंचते शाम हो गया था। सब लोग बहुत थक गए थे इसलिए जल्दीसे एक बादा बना के अपना अपना सामान बादा मे रखा और जल्दीसे खाना पीना खाके जल्दी सो गए। क्यूंकि अगले दिन सुबह होते ही लकड़ियाँ काटने जाना हैं। रात अच्छे से गुजरा। सुबह होते ही सब लोग पहाड़ के ऊपर लकड़ियाँ काटने जाने के लिए तैयार हो गए , बावदिया ने भी कमर बांध लिया तभी बादारियों के मुखिया आये और बावदिया से बोले देखो तुम अभी नए हो, जंगल के नियम निति नहीं मालूम, यहाँ भालू भी हे तुम अभी छोटे हो, इसलिए फ़िलहाल तुम यही रहो हमारे लिए खाना बनाओ और जंगल को थोड़ा जानो महसूस करो। बावदिया ने भी मुखिया की बात में हाँ मिलाया और न जाने का फैसला किया। बावदिया के अलावा बाकि सब चले गए। बावदिया ने वही खरी होके थोड़ी देर दोस्तों को जाते देखते रहे।
सब लोग चले जाने के बाद बावदिया अंदर चला गया और रात के जूठा बर्तन धोने के लिए पास ही में बह रहे नदी के किनारे गया और सारा बर्तन बह रहे पानी में डुबो दिया। उसके बाद एक ही झटके में बह रहा सारा पानी सुख गयी । अब नदी में एक भी बूंद पानी नहीं था , सिर्फ पत्थर दिख रहे थे। यह देख के बावदिया को समझ ही नहीं आया की यह क्या हो गया, सारा पानी कहा चला गया, थोड़ी देर इधर उधर देखके वह निचे पत्थर मे बैठ गया। माथे मे हाथ रख के वह सोचता रहा की अब क्या होगा ? पानी के बिना खाना कैसे बनेगा। वह घबराने लगा। सोचते सोचते सुबह से दोपहर हो गया। फिरभी उनको समझ नहीं आया की, आखिर उनसे क्या गलती हो गया ? अब उनका घबराहट बढ़ने लगा। क्युकी अभी शाम होने मे ज्यादा वक़्त नहीं है और शाम होते ही सभी बादारि पहुँच जायेंगे। आके उन लोगों को खाना नहीं मिला तो सभी दिनभर काम करके भूखे रह जायेंगे और उनपर गुस्सा भी करेंगे। ऐसी कौनसी वजह हे जिसके लिए वह पानी में बर्तन रखते ही सारा पानी सुख गयी सोचते सोचते उनको ख्याल आया कि कही जल कुँवरि नाराज तो नहीं हो गयी ? अब उनको समझ आ गया था कि उसने कितनी बड़ी गलती की हे। सुबह सुबह नदी में जल कुँवरि को बिना पूजा किये उसमे जूठा बर्तन रख दिया, जिसके लिए जल कुँवरि नाराज होके सारा नदी सुख गयी। तब बावदिया ने अपना सेरजा निकालके बजाने लगा। दिलसे माफ़ी मांगने लगा और दुःख भरी धुन बजाने लगा । वह अपनी धुन में इतना खो गया कि शाम हो गया। जल कुँवरि को उनका पश्चाताप और श्रद्धा देख के खुश हो गयी और वह चली आयी। जल कुँवरि आगे आगे और कल कल बेहटा पानी पीछे पीछे। जल कुँवरि बावदिया के पास आके बोली आँखे खोलो बावदिया। बावदिया ने आँखे खोला तो जल कुँवरि को देख प्रणाम किया और माफ़ी माँगा। जल कुँवरि बोली आखिर तुमने मुझे मना हि लिया, तुम्हारी इन दुःख भरी धुन और पश्चाताप ने मुझे खुश कर दिया। आगे से ध्यान रखना जंगल में कुछभी करने से पहले पूजा या प्रणाम करना जरुरी हे बोलके जल कुँवरि चली गयी और नदी में पानी पहले की तरह बहने लगी। सभी बादारि भी पहुंच गए थे वे लोग भी जल कुँवरि को देख प्रणाम किया और बावदिया को लेकर ख़ुशी ख़ुशी वहां से चले गए।
2 Comments
Good story
ReplyDeleteThank you dear
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